अरब की सरजमी पे कदम रखना है
प्यारे नबी की गलियों में भटकना है
उन गलियों की क्या दास्ताँ सुनाऊ
वहां पे तो सरकार का खजाना है
लुट सको तो लूटो दिन रात लुटता है
हुजुर के सदके का हर फर्द दीवाना है
उनकी गलियों की धुल ही मिल जाए मुझे
उन गलियों में ही अब दिल को लगाना है
खुदारा एक बार बुला लो मुझको भी
जिन गलियों में रहमत का खजाना है
ख़ुदारा उनका दामन न छुते कभी
सरकार की उम्मत में खुस सारा जमाना है
ख्वाज़ा पिया की शान में जितना कुछ कहा जाए कम है।
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ध्यान का विज्ञान।
मधुबाला के सौन्दर्य को निरखने का अवसर।
जी जाकिर भाई, बिलकुल दुरुस्त फ़रमाया ...सुक्रिया
ReplyDeleteयदि आप हिन्दू है तो हिन्दू कहलाने में संकोच कैसा. अपने ही देश में कब तक अन्याय सहेंगे. क्या आपको नहीं लगता की हमारी चुप्पी को लोग हमारी कायरता मानते हैं. एक भी मुसलमान बताईये जो खुद को धर्मनिरपेक्ष कहता हो. फिर हम ही क्यों..? सच लिखने और बोलने में संकोच कैसा. ?
ReplyDeleteयदि आप भारत माँ के सच्चे सपूत है. धर्म का पालन करने वाले हिन्दू हैं तो
आईये " हल्ला बोल" के समर्थक बनकर धर्म और देश की आवाज़ बुलंद कीजिये... ध्यान रखें धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कायरता दिखाने वाले दूर ही रहे,
अपने लेख को हिन्दुओ की आवाज़ बनायें.
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मेरे ब्लॉग पर पधारने के लिए आप सभी पाठक गन को मेरा धन्यवाद! उम्मीद करता हूँ इसी प्रकार से आप सब का प्रोत्साहन हमें निरंतर मिलता रहेगा.....
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