धीरे धीरे
वो मेले वो तारागढ़ की पहाड़ी सब है निराले
हर तरफ से आ रहा काफिला तेरी ओर धीरे धीरे
कदम बढ़ता है खुदबखुद तेरी ओर धीरे धीरे
आया हूँ मैं खिचता हुआ तेरी ओर धीरे धीरे
नहीं मिलता वो अलफ़ाज़ तेरी शान में बयां के लिए
छोर कर सब पीछे आये है तेरी ओर धीरे धीरे
जिधर भी जावों लगे अभी बहूत कुछ है बाकी
खिंच लाया मुझे आनासागर अपनी ओर धीरे धीरे
रंगबिरंगे फूलों से सजी है तेरी अनोखी बगिया
जैसे दुनिया ही सिमट आई है तेरी ओर धीरे धीरे
मन में उतर गयी गजल धीरे धीरे।
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प्रेत साधने वाले।
रेसट्रेक मेमोरी रखना चाहेंगे क्या?
@jakir ji is hauslaafjaaii ke liye aap ka bahut bahut sukriya.....
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